GHAZAL

ग़ज़ल
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी

ख़िल उठा दिल मिसले ग़ुंचा आते ही बरखा बहार
ऐसे मेँ सब्र आज़मा है मुझको तेरा इंतेज़ार
आ गया है बारिशोँ मेँ भीग कर तुझ पर निखार
है नेहायत रूह परवर तेरी ज़ुल्फ़े मुश्कबार
जलवागाहे हुस्ने फितरत है यह दिलकश सबज़ाज़ार
सब से बढकर मेरी नज़रोँ मे है लेकिन हुस्ने यार
ज़िंदगी बे कैफ है मेरे लिए तेरे बग़ैर
गुलशने हस्ती मेँ मेरे तेरे दम से है बहार
है जुदाई का तसव्वुर ऐसे मेँ सोहाने रूह
आ भी जा जाने ग़ज़ल मौसम है बेहद साज़गार
ग़ुचा वो गुल हंस रहे हैँ रो रहा है दिल मेरा
इमतेहाँ लेती है मेरा गर्दिशे लैलो नहार
साज़े फ़ितरत पर ग़ज़लखवाँ है बहारे जाँफेज़ा
कैफो सरमस्ती से हैँ सरशार बर्क़ी बर्गो बार

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